पुरूष 

मै नारी पुराने विचारों की

अच्छी लगती थी पहले की रीत

पुरूषों से ना था कोई भेद

ना था उनसे संघर्ष, हार या जीत।

 

बेटी को देख पिता की मुस्कान

गर्व से और बड़ जाती थी

संस्कारों की डोर मे बँधी

बेटी को दहलीज कभी ना सताती थी।

 

भाईयो संग वो हँसती खेलती

सबका प्यार वो पाती थी

हर कदम उससे आगे चलते

ताकि बहना की आँखों से

कोई आँसू ना छलके।

 

घर के काम को अपना समझ निपटाती थी

दो रोटी बनाने मे वो कितना इतराती थी

जिस पिता,भाई ने इतना लाड किया

उनके थक जाने पर सर वो दबाती थी।

 

अपने पैरो पर खड़ी हुई,सपने हुए साकार

शादी हुई धूमधाम से बरसा सबका प्यार

पति के साथ सात जन्मो की कसम खाई

एक छोटी सी रंगीन दुनिया बसाई।

 

हर रूप मे पुरूष ने उसे मान दिया

पिता,भाई,पति सबने सम्मान किया

फिर क्यों पुरूष से संघर्ष पर लगी है नारी

क्यों अपने को असुरक्षित समझे, बन बेचारी।

 

देव का रूप है ये

इनका अपमान गँवारा नही

पुरूष नारी दोनो अलौकिक हैं

जीवन इनके बिना कभी सँवारा नही।

© रंजीता अशेष

Do visit my Facebook page: https://www.facebook.com/Sushmaanjali-1168170113206168/
My book “Sushmaanjali. ..ek kaavya sangrah “available on Amazon

Connect with me on instagram

http://www.instagram.com/ranjeetaashesh

49 thoughts on “पुरूष 

  1. देव का रूप है ये इनका अपमान गँवारा नही
    पुरूष नारी दोनो अलौकिक हैं
    जीवन इनके बिना कभी सँवारा नही…. बिल्कुल सत्य —-बेटी का कोई मोल नही।शब्दरहित।

    Liked by 1 person

  2. आज भी सामंजस्य मे ही जीवन है
    भलो को भेद पता नही
    और निर्मल चितवन है
    नर और नारी पुरक अपनी
    हो कर्तव्यनिष्ठा दोनो मे
    तो हर पथ पर मनभावन है
    बहुत ही सुंदर रचना है आपकी
    अच्छा लगा ये विचार आज भी
    उपस्थित है अपनी पावन
    भावनाओ के साथ आपकी कविता मे

    Liked by 1 person

  3. बहुत ही सही बात कही है आपने। भगवान ने पुरुष और स्त्री को अलग अलग गुणों के साथ बनाया है। जीवन के अलग अलग क्षेत्रों में दोनों की ही अपनी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है। स्त्री और पुरुष की बराबरी करना और दोनों की तुलना करना आजकल के नारीवादियों का fashion बन गया है। स्त्री और पुरुष की तुलना कभी हो ही नही सकती। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरा अधूरा है। दोनों की तुलना करना जैसे सुई और तलवार की तुलना करने जैसा है कि दोनों में कौन श्रेष्ठ है ? दोनों ही चीजें अपनी अपनी जगहों पर काम आती हैं। दोनों में से किसी को भी कम नही माना जा सकता। इसी प्रकार स्त्री और पुरुषों के बारे में भी है।
    लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि आजकल के पढ़े लिखे लोग भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्त्री और पुरुष की तुलना करते रहते हैं।
    आपकी कविता पढ़कर अच्छा लगा कि आप भी इतने अच्छे और सुलझे हुए विचार रखती हैं ।

    Liked by 1 person

Leave a comment