मै पत्नी एक फौजी की

रोज़ नयी कोई खबर छपे,

रोज़ नया सवाल चले,

देश मे फौज से जुड़ा,

देशभक्ति का घर घर मशाल जले।

 

मै एक पत्नी फौजी की,

नित नए आडम्बर देख रही,

दिल मे डर और घबराहट है,

फिर भी रोटियाँ सेक रही।

 

कैसे फौजी को बना दिया,

कफन और सितम की दास्तान,

कभी तो कुछ अच्छा लिख दो,

जिससे लबों पर आ जाए मुस्कान।

 

मै एक पत्नी फौजी की,

कितनी रातें तनाव मे काटी,

कभी बच्चों को सँभाला,

कभी उनकी तस्वीर से तन्हाई बाँटी।

 

केवल बलिदान के लिए नही जन्मे,

ये वीर माटी में,

समाचार पत्रों को बस इंतज़ार

रहता,इनके मरने का घाटी में।

 

एक आग्रह करती हुँ  सबसे,

हमको दया का पात्र न बनाएँ,

जीते हैं हम गर्व और शान से,

हमारे त्याग और बलिदान को यूँ ना भुनाए।

© रंजीता अशेष
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70 thoughts on “मै पत्नी एक फौजी की

  1. This was so lovely!! ❤

    समाचार पत्रों को बस इंतज़ार 

    रहता,इनके मरने का घाटी में।

    The painful truth!

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  2. एक आग्रह करती हुँ  सबसे,

    हमको दया का पात्र न बनाएँ,

    जीते हैं हम गर्व और शान से, 

    हमारे त्याग और बलिदान को यूँ ना भुनाए—बहुत कुछ कहती आपकी लेखनी—-लाजवाब

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